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23 Dec 2025, Tue

कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने कहा:पेटेंट अधिकार विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता में वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक

डियन पेटेंट एटर्नी डॉ. शरद सालुंके ने पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट, डिज़ाइन तथा इनके व्यावहारिक महत्व पर विद्यार्थियों को प्रभावी प्रस्तुतिकरण दिया

उज्जैन : शुक्रवार, दिसम्बर 5, 2025 उज्जैन 5 दिसम्बर।पेटेंट अधिकार एक कानूनी अधिकार है जो किसी आविष्कार पर आविष्कारक को विशेष अधिकार देता है, ताकि वह उस आविष्कार को दूसरों को बनाने, उपयोग करने या बेचने से रोक सके।यह बात सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलगुरु प्रो.अर्पण भारद्वाज ने सम्राट विक्रम विश्वविद्यालय, की विधि अध्ययनशाला में “बौद्धिक संपदा अधिकार जागरूकता ” विषय पर आयोजित विशिष्ट जागरूकता व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रुप में संबोधित करते हुए कहीं।विशेष व्याख्यान के मुख्य वक्ता डॉ. शरद सालुंके,इंडियन पेटेंट एटर्नी, इंडियन पेटेंट ऑफिस तथा एसोसिएट प्रोफेसर, कंप्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग विभाग, पूर्णिमा विश्वविद्यालय, जयपुर ने बौद्धिक संपदा अधिकारों  के विभिन्न आयामों—पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट, डिज़ाइन तथा इनके व्यावहारिक महत्व—पर विद्यार्थियों को विस्तृत एवं प्रभावी जानकारी प्रदान की। उन्होंने शोध, नवाचार तथा स्टार्ट-अप संस्कृति में IPR की भूमिका और आवश्यकताओं पर भी छात्रों को प्रेरक मार्गदर्शन दिया।कुलगुरु प्रो.भारद्वाज ने संबोधन में IPR जागरूकता को विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता में वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक बताते हुए कहा कि पेटेंट अधिकार एक सरकारी दस्तावेज़ है जो आविष्कारक को अपने आविष्कार के लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है और आमतौर पर 20 वर्षों तक वैध रहता है। उन्‍होंने कहा कि यह कानूनी अधिकार दूसरों के शोषण से बचाता है और अपने नवोन्मेषी विचारों को सुरक्षित रखने में मदद करता है। पेटेंट किसी देश के शासकीय प्राधिकरणों द्वारा प्रदान किया जाता है, जो उस आविष्कार के लिए नया, उपयोगी और औद्योगिक रूप से लागू होने की शर्त पर निर्भर करता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता विधि अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ. डी. डी. वेदिया ने की।व्याख्यान में विधि अध्ययनशाला के सहायक प्राध्यापक श्रीमती कीर्ति पटेल,श्री राजीव सिंह व अन्य संकाय सदस्य तथा छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।अंत में, डॉ. डी. डी. वेदिया ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे व्याख्यान छात्रों की शोध-समझ, बौद्धिक क्षमता और विधिक दृष्टिकोण को नई दिशा प्रदान करते हैं।

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